bachpan

कितना  प्यारा  था  बचपन
माँ  का  दुलारा  था बचपन
वो बात बात पर  रोना
और  दूसरे पल   हस  देना
हाथ खोल  आसमान  बाहों  में  भर लेना
वो  गुड्डे  गुड़ियों  का संसार
वो गहरी नींद  पाओ  पसार
ना खाने  की  चिंता  ना  सोने  का  खयाल
चाहे  हो  गर्मी  चाहे  सयाल (सयाल  माने  सर्दी / पंजाबी  का  शब्द )
न धुप की चिंता ,ना   बारिश  की  फिकर
मन चाहे  जिधर ,निकल  गए  उधर

वो  तोतली  ज़ुबान  में  बोलता  बचपन
वो  नन्हे  पैरों  पर  गिरता  संभलता  बचपन
अनमोल थी ,  फिर  भी  सस्ती   थी  हँसी  उसकी
कितना साफ़  था  दिल  उसका
सबको  झट  से   माफ़  कर  देना  उसका
वो  पल में  रूठ  जाना ,पल  में  मान  जाना
वो  बिना  किसी बात  के   मुस्कुराना
जैसे जैसे  ज़िन्दगी की  बारीकियां  समझ  आती  हैं
तब  बचपन  की  याद  में  आँखे  भर  आती  हैं





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