yaha sab pagal hai
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कोई दौलत के लिए पागल
कोई शौहरत के लिए पागल
बच्चे अंको के लिए पागल
बड़े शंको के लिए पागल
नौजवान जवानी से पागल
बूढ़ा बीमारी से पागल
मोटा वज़न घटाने के लिए पागल
पतला डोले बनाने के लिए पागल
दूकानदार मुनाफा बढ़ाने में पागल
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कर्मचारी दफ्तर में काम से पागल
बेरोज़गार खाली जेब से पागल
अकेला अकेलेपन से पगलाए
दुनिया से कदम मिलाता भी करता हाय हाय
हर कोई सुनाता उसे अपनी राय
और वो सोचे कि अब कहाँ जाए
दुनिया जिसे पसंद करे ,
उसकी कमियाँ ना देख पाए
नफरत जो अगर हो तो ,
उसके गुण भी इसे नहीं भाए
इस पागलपन का हल यों निकाला जाए
ज़िन्दगी को तोहफा मान हर पल जिया जाए
इसे किसी रेस की तरह हारा और जीता न जाए
हर चीज़ को एक हद तक किया जाए
Very nice very true lines....
ReplyDeleteIn this poem, the writer has described the list of the people. How one is running from here to there to get everything.
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