khamoshi

ख़ामोशी
ख़ामोशी  मेरी  तुम्हे  सुनसान   लगती  है
बातें   भी लेकिन  परेशान  करती है
मै बोलू  भी तो  क्या  बोलू 
वो भी चुभता  है जो जुबान  कहती  है

अपने भी अपनों  की बातें  सुन  नहीं  सकते
फिर  गैरो  की  क्या  मज़ाल  बनती  है
वो तो  मै  हूँ ,जो  सुन  लेती  हूँ
जो मै  कुछ  कहदू  तो  बवाल मचती है

मेरी भी तो  तकलीफ  समझे कोई
मेरे  दिल में भी कहाँ  है मैल  कोई
ना  ही मुझे  तुमसे  है बैर  कोई
कहती  बस  वही हूँ
जो  बात  सही  हर बार  बनती  है

कभी  नीचा  नहीं  दिखाना  चाहा
कभी  दिल  नहीं  दुखाना चाहा
कई  नापसंद  बातों  को भी  गटक  कर
रिश्तो  को संभलाना  चाहा 

लेकिन  तमाम  कोशिशें  नाकाम  हो गई
दिल  की  नाराज़गी ,जब चेहरे   से  बयां हो गई
होठों को  तो  सी  लिया  था  मैने
पर  कम्बख्त  आँखे  थी  कि  
होठों का काम कर गईं

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