Mujhe kavi hi bnna tha

मुझे  कवि  ही बनना  था

मुझे  कवि  ही  बनना  था
मेरे  दिल  में   चुभे  एहसासो  को
भी  तो  किसी  तरह  निकलना  था
वर्ना  इसी  बोझ  तले
ही  मुझे  मरना  था
मुझे  कवि  बनना  था  शायद
इसीलिए  कोई  और काम  न बनना  था
मेरे  लाख  जतनो  को
कही  न  कही  अटकना  था
शुक्रगुज़ार  हूँ  उस  रब  की
जिसने  मुझे  ये  हुनर  दिया
विशवास  है उस  पर
उसने  जो किया  सही किया
उसने  मेरे  लिए  कुछ बड़ा ही  सोचा  है
तभी  उसने  मुझे  आज तक  रोका  है
एक दिन आएगा  मेरा  वक़्त,  जानती हूँ मैं
उसको  परवाह है मेरी , मानती  हूँ  मैं
देर  से  सुने  भले , मगर सुनता है वो
हर  इक की किस्मत  में  खुशियाँ  लिखता  है  वो


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