gussa(गुस्सा)

गुस्सा   

गुस्सा भी   अजीब  ही जज़बात  है
पी  लेते  है  तो खुद जलते  है
ज़ाहिर  हो  तो  रिश्ते  जल  जाते  हैं

गुस्सा  आता  है  विचारो  के टकराव  से
   बुढ़ापे-बिमारी   की लाचारी  के प्रभाव से
निकलता  है  भावनाओ  के  बहाव में 
बन  जाता  है  दर्द ,प्यार  के आभाव में 


वो  हम  पर  गुस्सा  करके
अपनापन   जताते  हैं
हमने  किया  तो , गलत सोच  बताते  हैं
ऐसा  लगता   है  जैसे 
गुस्सा  करना अपना   हक़ 
और  गुस्सा  सहना  हमारा   कर्तव्य   बताते  हैं

गुस्सा  नहीं  है  भली  शै  ए  दोस्त
ये  सबसे  जुदा  तुमको  कर देता है
तन  में  रोगों  को  जन्म  ये  देता
मन  को  अशांत  ये  कर  देता  है

इसलिए  जितना हो सके  प्यार  अपना  लो
गुस्सा  को अपना  आखरी  हथियार  बना लो





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