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Showing posts from April, 2018

bhul ja

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ए  दिल  भूल  जा उसे ,                                   जो  तुझे भूल  गया  जाने  छोड़ा  हाथ  उसने ,                                     या  छूट  गया   दुख  इस  बात  का  था ,                               वो    आगे  बढ़  गया  जाने थी  क्या मजबूरी ,                                  क्यों  चूनी  उसने     दूरी   जाने  कौनसी  कमी  थी                                 जो  हो  ना  सकी    पूरी  पर   सच  अब   यही  है ,                                   कि  वो  अब  नहीं  है  टूटा  हुआ  काँच  कभी ,                             जोड़ा  नहीं  जाता सचाई से  मुँह  यूँ                              मोड़ा  नहीं जाता  अगर वो  होता   मेरा                              तो  छोड़  कर  क्यों  जाता  जीवन  का   सच                                    तो   यही है    ज़िन्दगी की रेल  गाड़ी  में                                कई  मुसाफिर  मिलते  है   रास्ता  एक  होने पर                                वो  साथ  हमारे  चलते  है  मंज़िल  अपनी आने  पर                                अलविदा  कह  निकलते  हैं

Duniya ki sachai

दुनिया  की  सच्चाई बहुत  समझाया  मैने  इस  दिल  को  पर  ये फरेब  कर  ना  सका लोग  हमेशा इसे   छलते  रहे पर  ये   भलाई  से टल  ना  सका लोग  झूठ  बोलकर    मुकरते  रहे और  ये था  कि  सच      कहता  रहा खुद की  जरुरत के वक़्त  जी  जी  करते  लोग बाद  में   रंग  बदलते  लोग जब  बारी  हमारी  आती  तो  फ़ोन  भी  ना  पिक  करते   लोग यकीन  है मुझे  कुछ  आपसे  भी  टकराए  होंगे जिन्होंने  अपने  काम  पर  भी  मिस  काल  बजाए  होंगे (मिस  काल -अंग्रेजी  शब्द ) समझ  नहीं  आता  क्यों   नहीं  शरमाए  होंगे  कैसे  अब  समझाऊ   इन्हे चुप  रहना  मेरी  आदत  नहीं बल्कि  समय  की  ज़रूरत  है  क्यूंकि  ये  खुबिया  किसी  एक  की  नहीं बल्कि  बदलते  इंसान  की  फितरत  है इन्ही  लोगो  को  शिकायत  मुझसे  कि  क्यूंकि  झूठ  को  सच  साबित  करने  की  मक्कारी  नहीं आती झूठी  हँसी  हँसने  की  कलाकारी  नहीं  आती  इसीलिए  मुझे  दुनियादारी  नहीं  आती

bachpan

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कितना  प्यारा  था  बचपन माँ  का  दुलारा  था बचपन वो बात बात पर  रोना और  दूसरे पल   हस  देना हाथ खोल  आसमान  बाहों  में  भर लेना वो  गुड्डे  गुड़ियों  का संसार वो गहरी नींद  पाओ  पसार ना खाने  की  चिंता  ना  सोने  का  खयाल चाहे  हो  गर्मी  चाहे  सयाल (सयाल  माने  सर्दी / पंजाबी  का  शब्द ) न धुप की चिंता ,ना   बारिश  की  फिकर मन चाहे  जिधर ,निकल  गए  उधर वो  तोतली  ज़ुबान  में  बोलता  बचपन वो  नन्हे  पैरों  पर  गिरता  संभलता  बचपन अनमोल थी ,  फिर  भी  सस्ती   थी  हँसी  उसकी कितना साफ़  था  दिल  उसका सबको  झट  से   माफ़  कर  देना  उसका वो  पल में  रूठ  जाना ,पल  में  मान  जाना वो  बिना  किसी बात  के   मुस्कुराना जैसे जैसे  ज़िन्दगी की  बारीकियां  समझ  आती  हैं तब  बचपन  की  याद  में  आँखे  भर  आती  हैं

beti ka dard

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बेटी   ने पूछा  माँ  से   क्यों  जन्म   नहीं देती  मुझे   मैं  तो तुम्हारा  ही  अंश  हूँ  तुम्हारी   ही  परछाई   हूँ  तुम्हारे  प्यार  से  समाई  हूँ  माँ  का  उत्तर  क्या  करू  ला  कर  तुम्हे  इस समाज  में  जहाँ  बेटी  अपनी  नहीं  पराई  है  जहाँ  सासों  ने  अपनी  बहुओं  को  आग  लगाई  है  जहाँ  हर  कदम पर   औरत  के  लिए  रुसवाई  है  जहाँ  आज भी  औरत  मर्द  के पैर  की  जूती  बताई  है   बेटी  का  जवाब  माँ  अगर  सब  यूँ  ही  सोचने  लगे  तो समाज का क्या  होगा ? क्या  तुमने सोचा इसका अंजाम  क्या होगा  ये  धरती  नष्ट  हो  जाएगी  बिन बेटी  बहु  कहा से लाओगी  माँ  हमे ये  समाज  बदलना  होगा  ये काम किसी एक  से ना  होगा   सबको मिलकर  करना होगा  हर  लक्ष्मी  सरस्वती  को  अब दुर्गा बनना  होगा